तुम शायरी की बात करती हो,
मैं तो बातें भी कमाल करता हूँ।
ना जाने क्यों तुझे देखने के बाद भी,
तुझे ही देखने की चाहत रहती है!
मैं आईनों से मायूस लौट आया था,
मगर किसी ने बताया बहोत हसीन हूँ मैं।
कहते थे तुझको लोग मसीहा मग़र यहां,
एक शख्स मर गया तुझे देखने के बाद।
वो एक शख्स समझता था मुझे,
फिर वो भी समझदार हो गया।
ख़्वाहिश-ए ज़िंदगी बस इतनी सी है अब हमारी,
की तेरा साथ हो और ज़िन्दगी कभी ख़त्म न हो।
मैं हूँ और साथ तेरी बिखरी हुई यादें हैं,
क्या इसी चीज़ को कहते हैं गुज़ारा होना।
वो मेरे बाद भी खुश होगा किसी और के साथ,
मीठे चश्मों को कहाँ आता है खरा होना।
ये जो तुम हमारी बाते हमारी
शायरी पढ़ कर मुस्कुराते हो
देखना एक दिन दिल में समा जायेंगे हम
कुछ मजबूरियां हैं वरना,
कहाँ रहा जाता है तेरे बिन।